Tuesday, May 12, 2009

राजेन्द्र रघुवंशी: इप्टा के नवजागरण के नायक

सन् 1958 से इप्टा के राष्ट्रीय स्वरूप के कार्यक्रमों में शिथिलता आती गई। देश के सांस्कृतिक फलक पर इप्टा की जो छाप बनी हुई थी वह बनी रही पर गतिविधियां धीमी होती गईं। इसका परिणाम देश के विभिन्न प्रदेशों में कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं पर भी पड़ा। बहुत से शहरों में इप्टा के बजाये किसी और नाम से इप्टा से संबंधित लोगों ने काम शुरू कर दिया। ऐसे समय में आगरा उन शहरों में था जहां इप्टा बिना किसी शिथिलता के लगातार सक्रिय रही। इस सक्रियता के पीछे निश्चित रूप से राजेन्द्र रघुवंशी जी की लगन ही एक मात्र कारण रही। यह तो जाना माना सच है कि किसी संगठन की सक्रियता के पीछे सामूहिकता की बजाये किसी एक व्यक्तित्व का ज्यादा बड़ा हाथ हुआ करता है।
सन् 1980 के आस पास देश में प्रगतिशील लेखक संघ की गतिविधियों में एक तेज उठाव देखा गया। मध्यप्रदेश में खास तौर पर यह लक्षित किया जा सकता है। सन् 1980 में प्रगतिशील लेखक संघ का जबलपुर में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। देश के सांस्कृतिक,साहित्यिक आंदोलन में इसका बहुत महत्वपूर्ण रोल रहा। इसी सम्मेलन के दौरान इप्टा प्रगतिशील लेखक संघ के साथ ही इप्टा को भी राष्ट्रीय रूप से सक्रिय करने की बात हुई। इसके साथ ही इप्टा की गतिविधियां भी बढ़ चली। सन् 1982 में रायगढ़ में इप्टा मध्यप्रदेश का प्रथम राज्य सम्मेलन हुआ और सन् 1984 में जबलपुर में दूसरा राज्य सम्मेलन हुआ। इसी दौरान दिल्ली में इप्टा के पुनर्गठन के बारे मंे चिंता करते हुए बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ। इन बैठकों से इप्टा के लोगों में बड़ा आत्मविश्वास पैदा हुआ। बैठकों में कैफी आजमी, ए.के.हंगल राजेन्द्र रघुवंशी, रणवीर सिंह जी जैसे लोगों ने शिरकत की। नौजवानों में उत्तर प्रदेश से राकेश, जितेन्द्र रघुवंशी, बिहार से तनवीर अख्तर, मध्यप्रदेश से राजेश जोशी, हिमांशु राय, राजस्थान से रवि चतुर्वेदी, आदि ने शिरकत की। आंध्र प्रदेश में प्रजा नाट्य मंडली और केरल में के पी ए सी का बना बनाया संगठन था। वहां से साथी आते ही थे। इन बैठकों में यह महसूस किया गया कि इप्टा की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए इप्टा का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया जाये परंतु उससे पहले एक राष्ट्रीय कन्वेंशन आयोजित हो। यह कहां आयोजित हो ? कन्वेंशन बहुत आसानी से दक्षिण भारत में आयोजित हो सकता था परंतु उससे हिन्दी भाषी प्रदेशों में उसका प्रभाव परिलक्षित नहीं हो पाता। तब राजेन्द्र रघवंशी जी ने आगे बढ़कर आगरा का नाम प्रस्तावित किया। इसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया। आगरा और राजेन्द्र जी को इसका हक भी था। इप्टा का गठन सन् 1943 में हुआ था परंतु आगरा कल्चरल स्क्वैड के नाम से राजेन्द्र जी ने पहले ही काम शुरू कर दिया था। बम्बई में इप्टा के प्रथम अधिवेशन में राजेन्द्र जी उत्तर प्रदेश की ओर से शामिल हुए थे।
सन्1985 में आगरा में आयोजित इप्टा के राष्ट्रीय कन्वेंशन का इप्टा के पुनरूत्थान में अविस्मरणीय योगदान है। इस कन्वेंशन में एक राष्ट्रीय सम्मेलन से ज्यादा लोग एकत्रित हुए। एक विशाल धर्मशाला में सम्मेलन चला। सूर सदन में नाटकों के मंचन हुए। खूब चर्चाएं। खूब मिलना जुलना। इप्टा से जुड़े लोग बहुत उत्साह और उमंग के साथ पूरे देश से जुड़े थे। इतने बड़े आयोजन के लिए यदि आगरा तैयार हुआ और आगरा में हर घर के लिए इप्टा एक सुपरिचित नाम था तो इसका कारण राजेन्द्र जी की दशकों की मेहनत थी। उस समय जो लोग इस कन्वेंशन को सफल बनाने में लगे थे उनमें अनेक राजनैतिक रूझानों के लोग थे। वो अपने आगरा में अपनी इप्टा के लिए काम कर रहे थे। एक जनकलाकार का ऐसा ही प्रभाव होना चाहिए। न तो इप्टा और न राजेन्द्र जी के पास इतना पैसा था कि कन्वेंशन आयोजित होता पर राजेन्द्र जी और इप्टा के पास ऐसा जनसमर्थन था कि यह असंभव काम संभव हो गया।
आगरा के कन्वेंशन की सफलता से उत्साहित होकर हैदराबाद में इप्टा का राष्ट्रीय सम्मेलन तय हुआ। हैदराबाद के बाद जयपुर, पटना, और अभी अभी त्रिचूर सम्मेलन हुए। आगरा सम्मेलन में नेमिचंद्र जी भी आये थे। आगरा में पहली बार वर्षों बाद विभिन्न प्रदेशों से प्रतिनिधियों की रिपोर्ट से इप्टा का विस्तार और प्रभाव सामने आया। पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, सभी प्रदेशों में इप्टा की सक्रिय इकाईयां सामने आईं। इप्टा के बहुत से दोस्त संगठन सामने आये जो अलग अलग नामों से काम कर रहे थे लेकिन इप्टा के साथ थे। आज यदि देश में इप्टा फिर एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में सक्रिय हो सका है तो इसके पीछे निश्चित रूप से आगरा कन्वेंशन का हाथ है।
राजेन्द्र जी ने 1943 से आज तक आगरा में इप्टा के नाम से काम किया। हर वर्ष और हर महीने काम किया। आगरा में ही इप्टा के साथ ही लिप्टा काम करती रही है। बच्चों के इस रंगमंच ने आगरा को हजारों कलाकार तो दिये ही , एक रंग संस्कार दिया जिसका प्रभाव दिखाई देता है। आगरा में हर वर्ष गर्मियों में बच्चों के लिए शिविर लगता है जिसमें सैकड़ांे बच्चों को कलाओं में प्रशिक्षण दिया जाता है। ऐसे शिविर हर शहर में आजकल लगते हैं। परंतु आगरा में इसकी निरंतरता और राजेन्द्र जी का उससे जुड़ाव देेखने लायक है।
राजेन्द्र जी का पूरे देश में व्यापक पत्र संपर्क था। कभी भी कोई पत्र अनुत्तरित नहीं रहता था। देश के वरिष्ठ रंगकर्मियों कलाकारांे, निर्देशकों से उनका लगातार संवाद रहा। उनके पत्र उर्जा से भरे होते थे। हमेशा उत्साहवर्धन करते हुए। मृत्यु से पूर्व भी उन्होंने पत्र लिखे थे। मृत्युपर्यंत इप्टा के लिए समर्पित इस योद्धा को शत शत प्रणाम।
हिमांशु राय

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