Tuesday, May 12, 2009

मध्यप्रदेश प्रदेश इप्टा शुरूआत से अब तक

मध्यप्रदेश इप्टा का पहला राज्य सम्मेलन रायगढ़ में हुआ था। यह सन् 1982 की बात है। उसके पूर्व से ही अजय आठले और अन्य साथी रायगढ़ में सक्रिय थे। जबलपुर से मैंने इस सम्मेलन में शिरकत की थी। उस पुराने मध्यप्रदेश में से ग्वालियर, भोपाल, रायपुर, जबलपुर, बिलासपुर आदि स्थानों से लोग आए थे। सभी बहुत कम उम्र के थे और किसी के भी साथ कोई लंबा अनुभव नहीं था। ग्वालियर से अपूर्व शिंदे आए थे। भोपाल से मुकेश शर्मा थे। रायपुर से राजकमल नायक आए थे। दस बारह स्थानों से लोग आए थे। इस मायने में यह सम्मेलन बहुत सफल रहा है कि पहली कोशिश में इसे अखिल मध्यप्रदेश का स्वरूप मिल गया।
जबलपुर में विवेचना सन् 1975 से कार्य कर रही है। जब इप्टा मध्यप्रदेश ने काम करना शुरू किया तो जबलपुर की विवेचना ही इप्टा हो गई। जबलपुर में विवेचना चूंकि लगातार सक्रिय थी इसीलिये पूरे मध्यप्रदेश के लिये इसने एक प्रेरणास्त्रोत का कार्य किया। विवेचना जबलपुर में सन् 1975 से नाट्य संस्था के रूप में सक्रिय है। विवेचना के नाटकों और नाट्य दल ने पूरे देश में अपने नाटकों से यश अर्जित किया है। विवेचना का राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन देश में चर्चित है। विवेचना ने जबलपुर में इप्टा का दूसरा प्रादेशिक सम्मेलन 1984 में आयोजित किया था। उस सम्मेलन में श्री पुन्नीसिंह यादव अध्यक्ष व हिमांशु राय महासचिव बनाये गये थे। सन् 1988 में रायपुर में इप्टा का तीसरा सम्मेलन हुआ। इसका उद्घाटन दीना पाठक जी ने किया था। इसमें हिमांशु राय अध्यक्ष व मिनहास असद महासचिव बनाये गये। 9,10,11अक्टूबर 1992 को भोपाल में इप्टा का चैथा राज्य सम्मेलन प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन के साथ संयुक्त रूप से आयोजित हुआ। इसमें आबिद अली को महासचिव बनाया गया। संयुक्त मध्यप्रदेश का अंतिम सम्मेलन सन् 1995 में रायगढ़ में आयोजित हुआ था। इसके बाद सात आठ वर्षों के अंतराल के बाद विभाजित मध्यप्रदेश का सम्मेलन अशोकनगर में 2005 में आयोजित हुआ जिसमें हरिओम राजौरिया महासचिव बनाये गये।
ग्वालियर में हालांकि अनेक बार कोशिश हुई पर कभी भी इप्टा की इकाई लगातार सक्रिय नहीं रही। समय समय पर इप्टा के नाम पर काम शुरू तो हुआ पर बढ़ा नहंी। अभी काफी वर्षों बाद अयाज़ खान ने इप्टा के नाम के साथ काम शुरू किया है। वो युवा हैं और प्रशिक्षित हैं। उनसे काफी उम्मीदें हैं।
रायपुर में हमेशा इप्टा की इकाई लगातार काम करती रही है। राजकमल नायक भोपाल चले गये तो भी इप्टा का काम रूका नहंी। आबिद अली, मिनहाज असद, अरूण काठोठे, मोइज कपासी आदि हमेशा सक्रिय रहे हैं। बीच का एक दौर था जब मिर्जा मसूद इप्टा रायपुर में सक्रिय रहे।
भिलाई में तब मजूमदार दादा इप्टा के कर्णधार थे। बाद में उन्होंने इप्टा में काम बंद कर दिया पर जब तक रहे बहुत सक्रिय रहे। विभाष उपाध्याय भी उन दिनों इप्टा में बहुत अच्छा काम करते थे। राजेश श्रीवास्तव मणिमय मुकर्जी इप्टा के प्रमुख सूत्रधार बने। बिलासपुर में इप्टा हमेशा रही है। मधुकर गोरख, ऊषा वैरागकर, अरूण दाभड़कर, सचिन आदि इप्टा को नेतृत्व देते रहे। बिलासपुर में नाटकों के महत्वपूर्ण आयोजन हुए हैं। यहां अनेक सफल नाट्य शिविर आयोजित हुए हैं। बिलासपुर की प्रेरणा से ही बालको में इप्टा सक्रिय हुई और प्रयास इप्टा के नाम से बालको में बिलकुल शुरूआती दौर से आज तक धनाराम साहू के नेतृत्व में इप्टा काम कर रही है। बालकेा में नाटकों और नुक्कड़ नाटकांे के मंचन हमेशा होते रहे हैं। डोंगरगढ़ में काफी वर्षों से राधेश्याम तराने ने इप्टा का गठन किया और एक समर्पित टीम तैयार की। राधेश्याम तराने की जनगीत मंडली और उनका कैसेट हमारी यादों में बसा है। जगदलपुर में विजय सिंह ने एक समय बहुत उत्साह से इप्टा का कार्य शुरू किया। रायपुर में इप्टा के प्रादेशिक सम्मेलन में उनकी प्रस्तुति आज भी याद है। पर यह कार्य अल्पजीवी रहा। विजय सिंह ने ’सूत्र’ के नाम से काम शुरू कर दिया। एक पत्रिका भी निकाली। कांकेर, बचेली आदि में छुटपुट गतिविधियां होती रहीं। एक स्थान बालोद है जहां इप्टा की इकाई की याद इसलिये है कि यहां काम क्या हुआ यह तो नहीं मालूम पर यहां विवाद हमेशा रहा। एक बार तो आबिद अली ने बालोद जाकर भी समझाने का प्रयास किया।
अम्बिकापुर में हमेशा प्रतिपाल सिंह इप्टा का कार्य करते रहे हैं। अम्बिकापुर मंे अनेक शिविर आयोजित किये गये हैं। यहां बहुत से नए पुराने नाटक तैयार हुए। जनगीत मंडली रही। हर प्रादेशिक और राष्ट्रीय सम्मेलन में अम्बिकापुर की शिरकत रही। अम्बिकापुर ने अनेक क्षेत्रीय आंदोलनों में सक्रिय हिस्सेदारी की है। अम्बिकापुर तक रेलपटरी बिछाने की मांग को लेकर किये गये आंदोलन में इप्टा की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। शहडोल में इप्टा का काम तब ही शुरू हुआ जब विजय कुमार नामदेव सक्रिय हुए। उन्होंने इरफान सौरभ का शिविर आयोजित किया। बहुत अच्छी टीम बनी जिसे षडयंत्रपूर्वक तोड़ दिया गया। पर विजय नामदेव ने हिम्मत से लड़ाई लड़ी और एक नई टीम खड़ी कर ली है जिसने ’वान्या’ जैसे नाटक का मंचन किया है। शहडोल इप्टा के प्रयास से अब आसपास के इलाकों में इप्टा के गठन

की प्रक्रिया चालू हो चुकी है। अनूपपुर, कोतमा, उमरिया आदि स्थानों में इप्टा की सुगबुगाहट प्रारंभ हो गई है। रीवां में शुरू से डा विद्याप्रकाश इप्टा को सक्रिय रखे हैं। हनुमंत सिंह और ओम द्विवेदी ने इप्टा रीवां और सतना में अच्छा काम किया है। हनुमंतसिंह ने सतना में ’कालिगुला’ का बहुत अच्छा मंचन किया था। सतना में शशिधर मिश्रा इप्टा का काम शुरू से करते आ रहे हैं। इप्टा मध्यप्रदेश के शुरूआती दौर में मणिमय मुकर्जी, सतीश शर्मा, शरद शर्मा आदि ने सतना में बहुत मेहनत की है। पन्ना में इस समय सतीश शर्मा इप्टा की इकाई का काम देखेते हैं। अभी अभी उन्होंने ’रावण’ नाटक का मंचन किया। कटनी में सुबोध श्रीवास्तव जी के मार्गदर्शन में इप्टा हमेशा कार्य करती रही है। एक समय अनिल खम्परिया ने ’यात्रा’ पत्रिका का नाट्य विशेषांक भी निकाला था। इप्टा कटनी ने अनेक नाट्य प्रदर्शन आयोजित किये हैं। विवेचना जबलपुर को विशेष रूप से कटनी में अनेक बार मंचन हेतु आमंत्रित किया गया। छतरपुर में एकसमय निहाल सिद्दीकी ने काफी समय तक इप्टा की इकाई को सक्रिय रखा। आजकल छतरपुर में शिवेन्द्र शुक्ला और उनके साथी सक्रिय हैं। अनेक नाट्यमंचन और शिविर छतरपुर में आयोजित हो चुके हैं।
भोपाल में तब मुकेश शर्मा सक्रिय थे। जब तक मुकेश भोपाल में रहे भोपाल में इप्टा की इकाई लगातार अपना काम करती रही। भोपाल में मुकेश शर्मा के मुम्बई जाने के बाद इप्टा का काम सुनील शर्मा ने किया। फिर काफी दिनों तक कुछ भी नहीं हुआ। बाद मंे आलोक सक्सेना, शैलेन्द्र शैली और राजीव गोहिल ने बहुत सुव्यवस्थित काम किया। आजकल दिनेश नायर और आलोक सक्सेना इप्टा भोपाल को बहुत अच्छे से चला रहे हैं। इप्टा भोपाल ने ’परिवर्तन’ और ’जायज हत्यार’े जैसे नाटक मंचित किये हैं। इप्टा मध्यप्रदेश के अशोकनगर सम्मेलन के बाद इंदौर मंे इप्टा का गठन हुआ है और उसमें नियमित काम हो रहा है। दतिया में भी इप्टा के लिये बैठक हो चुकी है। अशोकनगर में प्रगतिशील लेखक संघ में बहुत लोग सक्रिय रहे हैं। पंकज दीक्षित के कलात्मक पोस्टर्स विख्यात हैं। अशोकनगर में इप्टा लंबे अर्से से सक्रिय है। इप्टा का नाट्य शिविर, बाल नाट्य शिविर और नाट्य मंचन अशोकनगर में जानेमाने हैं। यही स्थिति गुना में है जहां इप्टा का नाम सुपरिचित है। हरिओम राजौरिया, अनिल दुबे, पंकज दीक्षित आदि अशोकनगर, गुना में निरंतर सक्रिय हैं। होशंगाबाद मंे इप्टा का लंबा इतिहास है। शिवपुरी में इप्टा का गठन राजेन्द्र यादव ने किया था। वहां अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए हैं। इकाई में विशेष सक्रियता नहीं है। सागर में एक समय में बहुत अच्छा शिविर लगा। 100 के लगभग छात्र छात्राओं ने हिस्सा लिया पर संगठन बनने से पहले ही बिखर गया।
योगेश दीवान, गोपीकांत घोष, कमलेश सक्सेना आदि ने इप्टा होशंगाबाद का काम शुरू किया। इप्टा ने अनेक नाट्य शिविर और नाट्य मंचन आयोजित किये हैं। सन् 2001 में हिमांशु राय अपनी होशंगाबाद पदस्थापना के दौरान होशंगाबाद, इटारसी में सक्रिय रहे। होशंगाबाद और इटारसी में इस दौरान दो नाट्य समारोह भी आयोजित हुए। इसी समय होशंगाबाद से इप्टावार्ता का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इटारसी में अनिल झा इप्टा का काम देख रहे है। हरदा में इप्टा की इकाई कई वर्ष पहले बनी थी। हरदा में बहुत अच्छी शुरूआत हुई और अब तक अनेक नाट्य समारोह व नाट्य मंचन आयोजित किये जा चुके हैं। कमलेश सक्सेना ने जाकर हरदा में नाट्य शिविर लगाए और नाटक तैयार करवाए। हरदा जैसी छोटी जगह में दिल्ली और जम्मू जैसी जगहों से अरविंद गौड़ और बलवंत ठाकुर के नाट्य दल आकर मंचन करके गये हैं। संजय तेनगुरिया ने अच्छे निर्देशक और संगठक की भूमिका निभाई है।
सन् 83-84 में परासिया-चांदामेटा में विवेचना के नाट्यदल को आमंत्रित कर नुक्कड़ नाटकों का मंचन हुआ था। तबसे ही इस क्षेत्र में इप्टा की सुगबुगाहट है। बाद मंे परासिया में इप्टा का नाट्य शिविर आयोजित हुआ। छिंदवाड़ा मंे विजयआनंद दुबे नाट्यगंगा व इप्टा के नाम से सक्रिय हैं। छिंदवाड़ा में युवा व समर्पित कलाकारों की अच्छी टीम है। सीमित साधनांे में छिंदवाड़ा में अच्छा कार्य होता है। इन दिनों विनोद विश्वकर्मा छिंदवाड़ा और परासिया में इप्टा का काम कर रहे हैं। अभी अभी परासिया में बाल नाट्य शिविर का सफल आयोजन हुआ। छिंदवाड़ा में दो नाटकों दुलारीबाई और धरती के नीचे इन दो नाटकों का मंचन हुआ। बालाघाट में विनोद विश्वकर्मा की पदस्थापना के दौरान नूतन कला निकेतन ने इप्टा से संबद्धता रखी। बालाधाट में एक समय महेश व्यास और बी मलिक दादा ने इप्टा का गठन किया था। बालाघाट में नाटकांे का अच्छा माहौल है।
इस लेख में याददाश्त के आधार पर तथ्यों का उल्लेख किया है। बहुत से व्यक्तियों के नाम, नाटकों के नाम और घटनाओं का उल्लेख छूट गया है। उनको पूरा संग्रहीत करने पर ही मध्यप्रदेश इप्टा का पूरा इतिहास लिखा जा पायेगा। इस लेख में खासतौर पर नकारात्मक घटनाओं, विवादों का उल्लेख नहीं किया है।
हिमांशु राय

1 Comments:

At September 22, 2009 at 6:55 AM , Blogger संजय भास्‍कर said...

MADHYA PARDESH KE BARE ME BAHUT KUCH PATA CHALTA HAI

MERA NANIHAL BHI MADHYA PARDESH ME HAI SIR JI

SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home